शब्द भेद

*असली आत्मज्ञान से असली मोक्ष तक :-*

*शब्दभेद है अगम अपारा , भेद न पावै कोई हो।। कोटिक शब्द कही मुख बानी , एक शब्द हम गाई हो। ताको भेद काल नहिं पावे , सो संतन चित लाई हो।। कहैं कबीर अगम की बानी , पूरे गुरू लखाई हो। शब्द भेद पावेगा सोई , जाको सतगुरु पूरा होई हो ।।*


*1. "शब्दभेद है अगम अपारा, भेद न पावै कोई हो ।"*

👉 वास्तविक "शब्द" का रहस्य अगम (पहुंच से परे) और अपार (असीम) है। यह कोई साधारण "ध्वनि" या "मंत्र" नहीं है। इस शब्द का "भेद" यानी इसकी सच्चाई , सामान्य व्यक्ति या साधारण साधक नहीं समझ सकता।

*2. "कोटिक शब्द कही मुख बानी, एक शब्द हम गाई हो।"*

👉 करोड़ों तरह की बातें, मंत्र, वेद, उपनिषद, भजन सब मुख की वाणी हैं। पर कबीर साहेब कहते हैं कि हमने केवल उस "एक शब्द" की बात की है , जिससे असली आत्मज्ञान होता है, और मोक्ष का द्वार खुलता है।
[9/8, 3:25 PM] +91 88907 84773: *3."ताको भेद काल नहिं पावे, सो संतन चित लाई हो ।"*

👉 इस "एक शब्द" का रहस्य काल (निरंजन) नहीं जान सकता। इसीलिए जो संत काल-मुक्त ज्ञान में स्थित होते हैं, वे उसी एक शब्द में चित्त लगाते हैं ,नाद-निरंजन से परे परम शब्द में।

*4. "कहैं कबीर अगम की बानी, पूरे गुरू लखाई हो ।"*

👉 कबीर साहेब कह रहे हैं कि यह वाणी अगम लोक की है मन-बुद्धि से परे की। इसका अनुभव केवल पूर्ण गुरु ही करा सकते हैं ,जो स्वयं उस शब्द में लीन हों।


*5. "शब्द भेद पावेगा सोई, जाको सतगुरु पूरा होई हो ।"*
👉 वही जीव उस परमशब्द का रहस्य समझ पाएगा,
जिसे पूर्ण सतगुरु की कृपा प्राप्त हो , क्योंकि वही शब्द का द्वार खोल सकते हैं, जो स्वयं निशब्द परम पद को जान चुके हों।

असली आत्मज्ञान "एक शब्द" के भेद से होता है ,वह निशब्द परम नाद है।

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